कुरूप
रोडवेज
की बस चिकनी सड़क पर सरपट आपने गंतव्य की ओर भागी जा रही थी |सड़क के किनारे आम्र
मंजरियों की खुशबु से पल्लवी की आँखे कब बंद हो गयी उसे पता ही नहीं चला |उसकी
नींद एक कर्कश सी आवाज और झिंझोड़े जाने पर टूटी सामने एक भद्दा सा कुरूप नवयुवक अपनी
किसी परिचित के लिए खिड़की वाली सीट के लिए प्रार्थना कर रहा था |
उसके
चहरे को लेकर मन में चल रहे द्वन्द ने कुछ कहने से रोक दिया ,पल्लवी का सौन्दर्य उस
बस में सवार सभी लोगों के आकर्षण का केंद्र बिंदु था |उसके सामने खड़े व्यक्ति के
चेहरे में दूसरों के लिए आकर्षण तो क्या .....वह स्वयं वह भी ईश्वर के उस क्रूर
फैसले से आहात था |पल्लवी ने जब पुरे इत्मिनान से उसका मुयायना किया तब वह झेप गया
|इसी बीच पीछे की सीट पर बैठे यात्री उतरने लगे और उसने अपने परिचित को वहाँ बैठा
कर इत्मिनान की गहरी साँस ली|
कुछ
घंटे बाद ड्राईवर ने घाटी के एक रमणीक जगह पर बने मोटल के पास बस को रोका,तभी
कंडक्टर ने सभी को जल्द से भोजन करने की नसीहत एक अनुशासित गुरूजी की तरह दे डाली ,तभी पल्लवी ने एक सुन्दर से युवक को
देखा बिल्कुल वैसा ही जैसे सपनों में आने वाले राजकुमार होतें है|ईश्वर ने आपनी इस
कृति को बनाने में अपना पूरा प्यार उड़ेल दिया था|देखते ही देखते वह पुनः उसी
अंतर्द्वंद में उलझ गयी|
तभी
अचानक ......................अरे रे रे....कोई पकड़ो उसे ....हाय मेरी चेन
अब
सहयात्रियों ने भले लोगों की तरह सांत्वना और ढाढ़स बढाने की महती जिम्मेदारी ले ली
थी ,एक सुन्दर नवयुवती को इस कठिन मनोस्थिति से उबरने के प्रयास में लगे थे |
पर
फिर से वही कठोर सी आवाज ने पुनः पल्लवी को चौका दिया |
ये
शब्द बड़े की कर्णप्रिय थे...........ये लीजिये बहन जी आपकी चेन|
पल्लवी
ने देखा वही कुरूप .....सर से बहते रक्तश्राव को वह दबाये हुए अपनी मुस्कान के साथ
सामने खड़ा था |मदद करने से उपजे संतोष के तेज ने उसकी वेदना को वैसे ही छुपा रखा
था जैसे कलि घटा आपने आगोश में सूर्य को छुपा लेती है पर पल्लवी के आत्मबोध ने उसे
एक गहरा घाव दे दिया था |कुरूप,भद्दा और बेडौल सा दिखाने वाला नवयुवक उसे स्वर्ग
के देवदूत से भी सुन्दर दिख रहा था |
संतोष
कुमार भारद्वाज : एक अबोध रचयिता